आओ लौट चले 2.0
आओ लौट चले,
उन सुख से भरी वादियों में ।
खेतो की छोटी छोटी सी क्यारियों में,
बचपन की नादान किलकारियों में ।।
जहाँ था पता हमें बस अटखेलियों का,
जी भर के खेलना हैं हमें,
और छुप जाना हैं माँ के आँचल की छाँव में,
पता हैं वो बचा लेगी दुनिया की हर दीवार से ।।
खाना हैं चॉकलेट और टॉफियां,
कहते हैं की दांत ख़राब हो जायेंगे ।.
पर पता हैं हमें,
हर बार टॉफ़ी पापा ही दिलाएंगे ।।
मिलती थी ख़ुशी जब देखते थे,
दूर की तस्वीर दादा के कंधो पर ।
एक मीठी सी नींद आती थी उन्ही के कंधो पर,
और दादा की टोपी मेरा सिरहाना होती थी ।
भीग जाती हैं अब मेरी आँखे,
जब दादा की तस्वीर में माला होती हैं ।।
लौट जाना चाहता हूँ, में अपनी यादो में।
उन बचपन की ,
प्यारी प्यारी बातों में ।।
महेश कुमावत