आओ मिल कर पेड़ लगाएं
कुदरत से खिलवाड़ हुआ है
कुदरत हाहाकार करेगी
तुम जो सौ सौ वार करोगे
वह महती प्रतिहार करेगी
नहीं सधे अब तो फिर डूबे
यही सोच हुंकार लगाएं
आओ मिल कर पेड़ लगाएं
आओ मिल कर पेड़ लगाएं।
नदियों का पानी है दूषित
आंखों का पानी भी सूखा
आज मनस तृप्ति से वंचित
आज मनुज सच में है भूखा
आओ नव उत्थान करें हम
आओ जीवन गान करें हम
कलसाई जल की धारा को
शाश्वत और शुद्ध बनाएं
आओ मिल कर पेड़ लगाएं
आओ मिल कर पेड़ लगाएं।
धुआं धुआं है हर कोने में
हर पल एक घुटन है छाई
स्वच्छ हवा पाने को जैसे
पूरी मानवता अकुलाई
प्राण तभी सिंचित होंगे
जब उनमें जीवन प्राण बहेगा
गीत तभी उन्मादित होंगे
सुर में जब संगीत बजेगा
आओ निज वीणा को पोंछें
आओ स्वर यन्त्रों को ताने
जिससे हो हर जन मन हर्षित
ऐसा जीवन गीत सुनायें
आओ मिल कर पेड़ लगाएं
आओ मिल कर पेड़ लगाएं।
विपिन