आओ मिलकर अपनी संस्कृति बचाये
आओ मिलकर अपनी संस्कृति बचाये
यही इल्तिजा नन्हे पौधों को समझाये
दुआ लेले हम फकीरों की तुम चाचा
दुश्मनों को पहचाने मार कर भगाये
आओ बीज़ फ़िर से बोयें वीरता के
अपने हिन्द में भगत चंदू को उगाये
तम्मना यही मेरी की याद रहें हम
सावरकर के मकसद को अपनाये
जिसकों भूल चुका ज़ालिम जमाना
उस नाथूराम की सबको याद दिलाये
तहज़ीब सिखाये फ़िर से भारत की
अपनी संस्कृति से पश्चिम को झुकाये
धन्यवाद दाता तेरा बख्शी जिंदगी मुझे
अपनी कविता से हम सोया देश जगाये
अशोक गिरतें गिरतें गिर गये कहाँ तक
कौन अपना ये भारत अब महान बनाये
याद आतें है छत्रपति और गुरु गोविन्द
कौन इनकी तरह हमकों मुगलों से बचाये
दिल दुखातें यहां बनकर हिन्दू मुस्लिम
गीता और कुरआन को यह आग लगाये
कद्र घट रही आज अपनी पश्चिमी देशों में
अंधकार में डूबे भारत को रौशनी में लाये
अशोक सपड़ा हमदर्द