आओ मित्र
आओ मित्र
हम भी इत्र की दुनिया मे चलें
छिड़केंगे कुछ खुद पर
कुछ दूसरों पर
अलग अलग किस्म के इत्र
मेरे मित्र
क्या करोगे पढ़ाकर
बच्चे पढ़ गये तो इत्र खरीदेंगे
नहीं पढ़े तो इत्र बेचेंगे
लाभ तो बेचने में ही है।
आओ ना मित्र
हम इत्र बेचें
हाथ मे इत्र की थैली लिए
चलेंगे पैदल,मीलों,
बेचेंगे सब कुछ
इत्र के साथ
उसकी सुगंधि में सारे पाप
धुल जाएँगे
चिंता नहीं होगी हमें
चिंता करेंगे ‘कर’ वाले
कैसे गिनें
कैसे सूंघें
इत्र की खुशबू
जो व्याप्त तो सर्वत्र हैं
पर हम सूंघ पाते हैं
कुछ इत्रों के ही खजाने।
आओ मित्र
हम इत्र ही बेचें
इत्र की सुगंधि में
माता लक्ष्मी का वास है
दुःख का नाश है
इत्र की ‘इत्रता’ में ही
मित्र के मित्रता की खुशबू है
मित्र आ भी जाओ
हम इत्र बेचें।
हम इत्र बेचें।
—-अनिल मिश्र