आओ प्रिय बैठो पास…
आओ प्रिय बैठो पास…
आओ प्रिय बैठो पास, कुछ ख्वाब मधुर से बुन लें।
कुछ कहो जो तुम आँखों से, हम आँखों से सुन लें।
प्रेमसिक्त इस भावनगर में, लफ्जों का क्या काम।
दिल लगाकर दिल से, हर धड़कन दिल की सुन लें।
कितनी मादक रात कासनी, चाँद सुधा बरसाए।
प्रणय-निवेदन करे रजनी से, गुपचुप हम भी सुन लें।
नेहिल नज़रों से चंदा, दुलराए भू का आँचल।
शाश्वत प्रेमी के हाथों, कुछ हम भी प्रीत-शगुन लें।
आलिंगन बद्ध दो प्रेमी, बिछी सेज फूलों की।
प्रिया के कंपित अधरों की, थिरकन हम भी सुन लें।
मैं बन जाऊँ रात रुपहली, तुम चंदा बन जाओ।
प्रणय-केलि से चंद्र-निशा की, गुर कुछ हम भी गुन लें।
चुप्पी साधी अगर लबों ने, नयनों से कुछ बोलो
प्रेम-विनिमय चले परस्पर, मृदु कलियाँ सुख की चुन लें।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद