आओ न
करीब और करीब तुम मेरे, आओ न
संवाद नहीं तो कोई गीत, गुनगुनाओ न
ये रात युहीं कट जाएगी होठों पे तुम्हारे
सर्द जाने को है कुछ बात आगे, बढ़ाओ न
साँसों की डोर टूट रही न जाने कब से
इस प्यासे को झील की राह ,दिखाओ न
नहीं आता मुझे पढना प्रेम-अग्न प्रिय
आलिंगन में मुझे थोड़ा तो ,सिखाओ न
कसम से ये ग़ज़ल पूर्ण हो जाएगी मेरी
नेनों से तुम इसे एक बार पढ़, जाओ न
तकता रहूँगा उम्रभर युहीं एक टक तुम्हें
तुम खुले बाल में कोई बिंदी तो, लगाओ न
@कुनु