आओ ना..
आओ ना…
चलो मिलकर चाय पीते हैं।
फ़ुर्सत के क्षण में बीती बाते याद करते है
चाय के साथ अपनी पुरानी हंसी गूंजाते हैं
गुलजार शाम हो साथ मिल चाय पीते है
आओ ना…
साथ मिल हास-परिहास करते हैं
कुछ मेरी सुनो कुछ आपकी सुनते है
चलो आ जाओ फिर मिलकर चर्चा करते हैं
वही चाय की दुकान आज फिर रौनक करते हैं
आओ ना…
राजनीति की बातें और गरम चाय हो
और उसकी मेज पर समाचार पत्र हो
और हम दोनो का संग साथ हो
तुम और मैं साथ ही बस फुरसत के क्षण हो।
आओ ना…
चाय पीने का शौक और मिलने का बहाना
किसको है चाय पीनी ये तो जरिया है पास बुलाने का
हमारा साथ दो पल भर बस फ़ुर्सत में बिताने का,
ये तो जरिया है,अपनी कहने व तुम्हारी सुनने का
आओ ना…
ये तो अहसास करने व,समझने का,
अपनों की ख़ुशियों में,तुम्हे शामिल करने का
शामिल हो, अपनी ख़ुशियों को बढ़ाने का
जीवन की आपाधापी से दूर पुरानी बातें याद करने का।
आओ ना…
चलो कुछ क्षण निकाले हम दोनो
आओ महफ़िल सजाए हम दोनों
फ़ुर्सत के क्षण हैं आओ साथ बिताए दोनो
चाय की चुस्की के साथ फिर से मिल ले दोनो।
आओ ना….
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद