आओ धरा अपनी सजाएँ
वृक्ष लगाएँ और बढ़ाएँ
आओ धरा अपनी सजाएँ ।
हरी चुनरिया इसे उढ़ाएँ
हरा भरा श्रंगार कराएँ ।
आओ धरा अपनी सजाएँ ।
रोपित कर भूल न जाएँ
नित इन पर जल बरसाएँ
रक्षक इनके हैं बन पाएँ
माया में खुद उलझ न जाएँ
सुख अपने में डूब न जाएँ
वृक्ष लगाएँ और बढ़ाएँ
आओ धरा अपनी सजाएँ ।
डॉ रीता