आओ ऐसी अपनी सोच बनाये
।।आओ ऐसी अपनी सोच बनाये।।
लोहे कांक्रीट के बड़े बड़े बन रहे ये पहाड़ है।
विनाश है निश्चित ये मारते दहाड़ है।
प्रकृति कराहती
हमे हैं पुकारती
हो रहा ये विकास जो
तैयारी है विनाश की।
कितनी नदियां सूख गई
कितने झरने सूख गये
वारिश बादल भी हमसे
देखो कैसे रूठ गये।
कहीं बाढ़ है
कहीं है सूखा
जनमानस हैरान हुआ है
परेशान और टूटा भूखा।
अभी सम्भल जाओ मेरे प्यारे
प्रकृति है तुम्हे निहारे
प्रकृति का संरक्षण है खुद का संरक्षण
पेड़ पौधों को लगवाये
जल संवर्धन हम करवाये
आओ ऐसी अपनी सोच बनाये।
बृन्दावन बैरागी”कृष्णा”
मो.9893342060