आओ एक बार फिर
एक बार फिर से…..
आओ वही पुराने होकर
फिर से अपने इस बनारस में ,
तुम्हारे बिना सूना है हाॅस्टल का वो कमरा
और ना भूलने वाला फैकल्टी का वो झगड़ा ,
रिक्शेवाले आज भी बैठे हैं हमारे इंतज़ार में
लंका से लंका तक की सवारी के करार में ,
सूनी हैं BHU की वो सड़कें …..
अब कोई नही लहराता काटन का वो दुपट्टा
ना ही लगती हैं माथे पर वो गज़ब की बिंदियाँ
शायद ही खाता होगा कोई दोस्तों का टिफिन मार के झपट्टा ,
बिंदास जींस में वो स्कूटी का लहराना
लड़कियां होकर भी लड़कों को डराना
हर परिस्थिति मे हमारा साथ निभाना ,
स्केचिंग के बहाने अस्सी की वो मस्तियाँ
आर्ट के समान के लिये घुमना गली – गली और बस्तियाँ ,
वो लड़कों की खुशामद करके मंगवाना समोसे
उनको ये एहसास कराना कि अब तो हम है तुम्हारे ही भरोसे ,
वार्डन से छुप कर रूम में पकाना वो लज़ीज़ खाना
खाने से पहले भूख से और बाद में ज्यादा खा कर मर जाना ,
याद हैं ……..????
सबका पोनी पर स्कार्फ बांधना ?
सबका अलग – अलग जगहों पर एक जैसा झूठ बोलना ?
कैसे एक्सीडेंट का नाटक करके दोस्तों को रूलाना ?
सिक्रेट गाॅसिप सुनने के लिये दोस्तों को कोल्ड ड्रिंक पिलाना ?
आज ना खाने में वो स्वाद है
ना बातों में वो राज़ है
ना ही हमारे आस – पास हमारे जैसा कोई बन्दा है
उस वक्त लगता था कि बिछड़ेगें तो मर जायेगें
पर आज बिछड़ कर भी ज़िन्दा हैं ,
आखों के सामने सब तस्वीरें स्थिर हैं
पता नही क्यों ये आगे बढती ही नही
इतने सालों बाद भी हमारी दोस्ती किसीसे
हाय ! हैलो !…के आगे बढ़ती ही नही !!!
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंंह देवा , 17/12/17 )