आई सी यू
महानगर के अस्पताल के आई सी यू के भीतर
अपनी अंतिम साँसे लेता बीमार
आई सी यू के बाहर चिंतित बीमार के तीमारदार
और उन्हें सांत्वना देते रिश्तेदार
फूफा,मौसा,चाचा,मामा,ताऊ,बहनोई और पड़ोसी
सब परेशान हैं
हैरान हैं
पर क्या करें आना भी मजबूरी थी
नींद,गाड़ी का भाड़ा,थकान,
फल-फ्रूट और भी न जाने क्या क्या
बेचारे समाज के मारे
बीमार के बेटे-बहू
और बहू के मायके वाले
सब क्या ही करते
आना ही पड़ा
उनका मौन भी चीख़ रहा था
बाहर चेहरों पर संवेदनाएं
और भीतर बीमार के पास आने की लाचारी
ख़ैर दुनियादारी भी तो कोई चीज़ है
मंझला बेटा भी फूट पड़ा
वो बॉस से लड़ के छुट्टी जो ले के आया था
बड़ा बेटा व्यापारी था तो धंदा कैसे बंद करता
समाज की विघटित और विस्थापित मजबूरियों के चलते
बोलती बतियाती ज़िन्दा लाशों जैसा
तीमारदारों और रिश्तेदारों का झुण्ड
अपनी थोथी शर्म और खोखली ज़िम्मेदारी का वेंटिलेटर पहने
आई सी यू के बाहर पड़ा है
मरीज़ की अंतिम साँस तक
अस्पताल के आई सी यू के ठीक बाहर
धड़ल्ले से चल रहा है
रिश्तों का आई सी यू !!!