आई पावस ऋतु मनभावन…
आई पावस ऋतु मनभावन
घनन-घनन-घन बरसे सावन
हुलस रहा सृष्टि का कन-कन
अद्भुत ये कुदरत का आँगन
सूखतीं नदियाँ, ताल, सरोवर
सूखी हरियाली, सूखे उपवन
इतना बरसो आज तुम बदरा
भर जाए रिक्त धरा का दामन
उमस, तपन, नीरसता बीते
भर किलकारी चहकें आँगन
जल – धार मधुर संगीत रचे
सुर बने श्रुति- मधुर लुभावन
सबको अपना मनमीत मिले
आन मिले विरहन से साजन
सखियाँ सोलह श्रंगार करें
गाएँ झूलती कजरी सुहावन
सुखद संदेशे घर-घर आएँ
बनें प्रसंग शुभ मंगल पावन
सुखों की हो न कोई ‘सीमा’
बने ऋतु सब ताप नसावन
-डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)