आईनों के शहर में
आईनों के शहर में है घर आपका
ये छुपा जो रहें हैं छुपेगा नहीं
ख्याल रखिए दरो -दीवार टूटे नहीं
ये न सोचें के टूटने पर चुभेगा नहीं
मुट्ठी भले ही बंद है मेरी हसरत लिए
न समझिए के ये कभी खुलेगा नहीं
खुद को देखकर वे भी शर्मसार हैं
जिसे समझते थे के ये झुकेगा नहीं
वक्त है साथ माना ये सच बात है
आप रुक जाएंगे ये रुकेगा नहीं
– सिद्धार्थ गोरखपुरी