आईना_रब का
आईना_रब का
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प्रकृति के आंगन में झाँको ,
आईना रब का भी लगा है।
दिखाई बस उसको ही पड़ता ,
मैल जिसके मन का धुला है..
प्रकृति के आंगन में झाँको..
दिनकर का नारंगी गोला ,
सुबह आसमान उगा है।
चंदा की शीतल सी चांदनी,
नटवर ने महारास किया है…
प्रकृति के आंगन में झाँको..
पपीहे की पी पी बोली ,
कोयल की कूक सुनो तुम।
गोरैये का निर्भीक फुदकना ,
सुनहरी सी धूप खिली है…
प्रकृति के आंगन में झाँको..
चिड़ियों की चहचहाहट सुरीली ,
मेमनो की मिमियाहट भी सुन तू ।
बछड़ो का उछल-कूद निराली ,
कुदरत ने श्रृंगार किया है…
प्रकृति के आंगन में झाँको..
मगन से वो गान सुनो तुम,
नदियाँ जो गुनगुनाती बहती।
पवन का निष्ठुर सरसराहट,
प्रकृति कुछ कह सा रहा है…
प्रकृति के आंगन में झाँको..
हिमगिरि की चादर को देखो,
श्वेत रजत परिधान सजा है ।
वृक्षों की ये झूलती डाली ,
वायु संग मिलाप किया है…
प्रकृति के आंगन में झाँको..
भ्रमर का रसपान तो देखो ,
पुष्पों को परेशान किया है।
कितना सजीव प्रकृति सलोना,
लग रहा प्रभु दरबार सजा है…
प्रकृति के आंगन में झाँको..
प्रकृति है अनमोल खजाना ,
सतरंगी संसार सजा है।
हिंसा यदि मन से तू निकालो,
अमृत सम भंडार पड़ा है…
प्रकृति के आंगन में झाँको..
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि –०६ /११/२०२२
कार्तिक,शुक्ल पक्ष,त्रयोदशी ,रविवार
विक्रम संवत २०७९
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