आईना और तुम
आईना और तुम
¤ दिनेश एल० “जैहिंद”
आईने में खुद को निहार लो
और मुस्कुरा लो ।
फिर तुम खुद को सिंगार दो
और क्षुधा बुझा लो ।।
मगर आईना तो आईना है
ये तुम्हारी खूबसूरती ही बताएगा
तुम्हारे चरित्र को नहीं ।
तुम जरा अपने दिल में झाँको
और अपने चरित्र को देखो ।
तुम्हारा तन मैला,
मन मटमैला है
मस्तिष्क में गंदगी,
विचार कँटैला है ।।
फिर ये आईना क्या करेगा
वही कहेगा जो उसे दिखेगा ।
उसे सिर्फ़ बहिर्मुख दिखता है
क्योंकि वह तो बहिर्गामी है ।
वह कभी अंतर्यामी नहीं हो सकता
क्योंकि ऊपर वाले के सिवा
इस जग में कोई अंतर्यामी नहीं है ।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
19. 06. 2017