आइना देखा तो खुद चकरा गए।
गज़ल- 21
आइना देखा तो खुद चकरा गए।
अपना चेहरा देखकर घबरा गए।
छोड़कर उनको हम आगे आ गए।
इसलिए अपनों को हम बिसरा गए।
भूख के मारे थे वो, करते भी क्या,
रूखा सूखा भी निवाला खा गए।
तुम जमीं पर भी नहीं हो, मर चुके,
तुमको लगता आसमां पर छा गए।
दूसरों को मारकर ज़ीने का शौक,
या खुदा हम किस जहां में आ गए।
आदमी भी रॅंग बदलता इस तरह,
देखकर गिरगिट सभी शरमा गए।
खो चुके ‘प्रेमी’ जहाॅं इंसानियत,
उस जहां को देखकर घबरा गए।
……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी