#ग़ज़ल-33
मीटर-212-212-212-212-212-2
आइना देखके तुम ख़ुदी पर फ़िदा हो रहे हो
नूर से पर सुनो हर लम्हा तुम ज़ुदा हो रहे हो/1
ज़िंदगी धूप है छाँव है प्रीत का गाँव भी है
भूलके तुम खुदी को मगर गुमशुदा हो रहे हो/2
चाँद की चाँदनी का मज़ा किस तरह लीजिएगा
डूबके नींद में यार तुम अलहदा हो रहे हो/3
बात हक की करो छोड़ दो छल भरे फ़लसफे अब
भार है झूठ तो भूलके क्यों ख़ुदा हो रहे हो/4
नींव की ईंट का जान लो सच अगर जीतिएगा
हारके क्यों अटा पर अरे सच रिदा हो रहे हो/5
काम हर हँस किया कीजिए ज़िंदगी खिल उठेगी
रूठ के काम से क्यों सदा बे-अदा हो रहे हो/6
-आर.एस.’प्रीतम’
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