आंसू से गीला तन है ।
फिर कुछ कहने का मन है ।
कलम उठी लिखने को बात
नहीं मिला मुझको कोई साथ ।
संवादो में बहे बेदना।
आंसू से गीला तन है ।
फिर कुछ कहने का मन है ।
कोशिश रही समेटू भाव
भाषा को मिलता ठहराव।
कैसे खोले पट हृदय के।
दिख न जाए सारे घाव।
कंपित हृदय हर पन है
फिर कुछ कहने का मन है ।
संवादों का यूँ रूक जाना।
कारण मैंने न अबतक जाना।
नए राह के हम बटोही।
पथ रहा है मेरा अनजाना।
संकोचो से घिरा मन है ।
फिर कुछ कहने का मन है ।।