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1 Oct 2023 · 1 min read

आँगन पट गए (गीतिका )

आँगन पट गए (गीतिका )
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
(1)
काटने को पेड़ घर के, सब जगह जन डट गए
एसी कमरों में लगे तो, दीर्घ-आँगन पट गए
(2)
हमने जब बच्चे पढ़ा कर, भेज अमरीका दिए
संसार से तो जुड़ गए, पर जड़ों से कट गए
(3)
तंग गलियों में पुरानी, कार जा पाती नहीं
दाम पुश्तैनी-घरों के, इस वजह से घट गए
(4)
चिट्ठियां कब तक पुरानी, काल भी रखता भला
धीरे-धीरे पत्र सारे , सौ जगह से फट गए
(5)
रिश्वत बड़ी भूकंप की, थी पहाड़ी को गई
इस तरह अपनी जगह से, ढेर पत्थर हट गए
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
रचयिता : रवि प्रकाश,
बाजार सर्राफा, रामपुर( उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451

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