आँख मेरी चौधिंयाये रौशनी इतनी न दे
आँख मेरी चौधिंयाये रौशनी इतनी न दे
राह भटकूँ मैं मुझे तू तीरग़ी इतनी न दे
ग़म अता करना फक़त उतना उठा लूँ मैं जिसे
आँख से बाहर निकल जाये खुशी इतनी न दे
दर्द देना है खुदा तो मुझको देना शौक़ से
किन्तु माँ की आँख में हरपल नमीं इतनी न दे
साथ अपनों का दिलाना तू मिरे मौला मुझे
बोझ बन जाऊं किसी पर जिंदगी इतनी न दे
चाँद – तारों से सजी महफ़िल न मुझको चाहिए
और मैं तड़पूँ अकेली बेबसी इतनी न दे
बबीता अग्रवाल #कँवल