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15 May 2023 · 1 min read

आँखों में है दूध और आँखों में पानी

आँचल में है दूध और आँखों में पानी*
**********************************

सुला कर गोद में अपनी झुलाया पूत को पलना
तड़प कर रो उठी ममता पड़ा अपमान जब सहना।
बह रहे आँख से आँसू निकल घर द्वार से अपने
किया छलनी हिया मेरा मिला कर राख में सपने।।

उठी उम्मीद की अर्थी तरसती नेह पाने को
छलावे के पहन रिश्ते चिता पर बैठ जाने को।
कभी सोचा नहीं आगम जना जब पूत माता ने
डँसेगा नाग बन मुझको दिया कुलदीप दाता ने।।

थका पाया लगा सीने दुलारा प्यार से इसको
नहीं मालूम था उस दिन लजाएगा यही मुझको।
छिपा कर हाथ के छाले किया श्रमदान हँस करके
लुटाया चैन का जीवन कुरेदे राख ये तनके।।

सहूँ हर दर्द दुनिया का हुई लाचार अंगों से
जुड़ा ये साथ दुश्मन के दिखाता जाति दंगों से।
झुका कर शीश को अपने खड़ी अपराध की जननी
कलंकित दूध कर मेरा दफ़न की राख में करनी।।

लहू गद्दार है मेरा कहूँ कैसे ज़माने से
मिटा दी ख़ाक में हस्ती नहीं हासिल जताने से।
बनी मैं राख की ढेरी सुलगती रेत छाई है
मरुस्थल बन गया जीवन उदासी उर समाई है।।

स्वरचित/मौलिक
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)

मैं डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना” यह प्रमाणित करती हूँ कि” आँचल में है दूध और आँखों में पानी” कविता मेरा स्वरचित मौलिक सृजन है। इसके लिए मैं हर तरह से प्रतिबद्ध हूँ।

Language: Hindi
180 Views
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