आँखों में नूर आया मिरे लब पे हँसी आ गई..
आँखों में नूर आया मिरे लब पे हँसी आ गई
हम भूले हुये थे राहें और तेरी गली आ गई
उड़ाये जुल्फें मिरी कभी आँचल से खेले है
तुम्हें जो देखा इन हवाओं को दिल्लगी आ गई
मिलते ही आँखें पढ़ गए हाल-ए-दिल गहराई तक
गई बेरूख़ी उनकी लहजे में भी नमी आ गई
रंग तेरे पास आ बैठे लब ये गुनगुना बैठे
तस्वीरों को बोलना नगमों में नगमगी आ गई
मिली थी राहतें ज़माने के शोलों की गरमी से
लो फिर उसी बरसात के मौसम की तलबी आ गई
जब छा गई घटायें ज़मीं से आसमानों तक यहाँ
सजेगा फिर गुल-ए-गुलशन उम्मीद की कली आ गई
जब भी आँख उठाई है देखे हैं करिश्में ए खुदा
झुकी है आँख’सरु’ की तिरे क़दमों में जबी आ गई