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26 May 2024 · 1 min read

आँखों में अँधियारा छाया…

आँखों में अँधियारा छाया, मन पर घोर कुहासा है।
दुख को क्या कहना अब सबसे, दुख तो बारह मासा है।

कौन हितैषी यहाँ हमारा, किससे कुछ उम्मीद करें ?
भाग्य हमारा ही हमको जब, देता आया झाँसा है।

शुष्क अधरपुट देख हमारे, उमड़ा सागर तृषा बुझाने,
ठुकराया आवेदन उसका, मन को दिया दिलासा है।

रिक्त जलाशय सूखा मानस, गम-रवि ने जल सोख लिया।
नयनों में बदरा घिर आए, पंछी मन का प्यासा है।

दुख अपनी सब सेना लेकर, धावा निसदिन बोल रहा।
बैठा पग-पग डेरा डाले, जमघट अच्छा खासा है।

रूठी बैठीं खुशियाँ सारी, जाने किसकी नजर लगी।
घुमड़ रहे घन मन-अंबर में, बरस रहा चौमासा है।

दूत नियति के सेंध लगाकर, खेल बिगाड़ें पल भर में।
जब तक आस बँधे कुछ मन में, तब तक पलटे पासा है।

जबसे होश सँभाला हमने, झड़ी लगी है प्रश्नों की।
सत्य समझ न आया अब तक, घुमड़ रही जिज्ञासा है।

अपनी-अपनी कहते सारे, कैसे ‘सीमा’ बात बने।
धीरज ही अब बना सहारा, देता नित्य दिलासा है।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
“अवनिका” से

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