आँखों के आंसू झूठे है, निश्छल हृदय से नहीं झरते है।
चुप रहकर जो सह लेते जो,
क्या दुख उन्ही को होता है ?
ये भ्रम सभी का होता है,
ये दर्द उसी का होता,
महसूस हृदय से जो करता,
प्रीत उसी की होती की,
आँखों के आंसू झूठे है,
निश्छल हृदय से नहीं झरते है।
घात जिसे है ,
चुभती है उसको,
शांत मन उसी का क्यो रहता है ?
अंत: मन उसका दर्द हरता की,
आहे उसकी ही होती है,
सुन पाना हर सख्श का नही होता है,
आँखों के आंसू झूठे है,
निश्छल हृदय से नहीं झरते है।
मुख से जो नही कहता है,
पीड़ा को छुपाये रह सकता है,
सहनशीलता जहाँ हारती हो,
मन मस्तिष्क भी चुप्पी साधती तो,
वो घात कहाँ होती है ?
हृदय पर आघात होता है,
आँखों के आंसू झूठे है,
निश्छल हृदय से नहीं झरते है।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।