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25 May 2024 · 3 min read

अ ज़िन्दगी तू ही बता..!!

अ ज़िन्दगी अब तो बता दे,

क्या हसरतें हैं तेरी

क्यूँ हर घडी इतने इम्तिहान लेती है मेरे

मैं इंसान हूँ भगवान तो नहीं

आखिर तू ही बता और कहा जाऊं,

किस से इत्तिला करूँ

अब तो रहम कर इस नन्ही सी जान पर

कितने और उलझे झंझावात पार करने होंगे

कितनी और तपस्या करनी होगी

आखिर जीने के लिए?

मर- मर के जीना तो जीना नहीं

अ ज़िन्दगी तू ही बता कि

ये कैसा कटु सत्य है कि

एक बेटी का जन्म ही मातम के साथ होता है

कोई क्यों नहीं सोचता है कि

वो भी एक इंसान है.

भले बेटा माँ- बाप को लात मारे

पर फिर भी बेटा घर कि रोनक है,

आखिर कैसे?

और उस बेटी ने पैदा होते ही

ऐसा कोनसा जुर्म कर दिया कि

उसे समाज में पराया धन समझा जाता है

चाहे वो जीवन भर

माँ- बाप कि खुशियों के लिए

तिल- तिल कर मरती रहे,

चाहे अपनी इच्छाएं मार के,

बाप, भाई, पति और बेटे के लिए

पल- पल बलिदान करती रहे

अ ज़िन्दगी तू ही बता

आखिर बेटी ही क्यूँ ?

बाबुल का घर छोड़ के पराये घर जाती है ?

क्या उसे अपने माँ- बाप कि सेवा नहीं करनी?

या फिर दुनिया में उसका कोई अपना नहीं?

क्यूँ कभी लड़का ससुराल में नहीं रहता?

अगर इतनी ही बुरी हैं लड़कियाँ तो

फिरक्यूँ चाहिए तुम्हे घर में चाँद सी बहु?

क्यूँ चाहिए माँ तुम्हे पैदा करने को?

क्यूँ माँ ही परिवार कि जिम्मेदारियां लेती है?

क्या पिता का कोई कर्त्तव्य नहीं होता?

क्यों माँ को ही हर कोई इतना सताता है?

क्या पिता ने तुम्हें पैदा नहीं किया?

क्या माँ बस दुनिया- भर कि तपिश सहने को है?

क्यों पिता, माँ का हाथ नहीं बंटाता है?

क्यूँ ज़हाँ कि हर सलाह

बेटी, बहन, पत्नी या माँ के लिए है?

क्या पुरुष जाती को इसकी ज़रूरत नहीं?

या फिर उसका फैसला कभी गलत नहीं हो सकता?

क्यूँ पुरुष ही घर का मुखिया होता है?

क्यूँ सबको पालने वाली माँ को ये हक नहीं?

क्यूँ बहन को हमेशा चारदीवारी में पाबंद कर दिया जाता है?

बस केवल कथित सम्मान के नाम पर

क्या पुरुष का चरित्रवान होना ज़रूरी नहीं?

क्यूँ कोई यह नहीं समझता है कि,

जिस नारी को सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा मानकर पूजा जाता है

क्यूँ उसे साक्षात् रूप में पैरों टेल कुचला जाता है?

आखिर जुर्म क्या है, कसूर क्या है उसका?

क्यूँ उसे सामान कि तरह इस्तेमाल किया जाता है?

क्या उसका स्वयं कोई वर्चस्व नहीं?

क्यूँ उसके अधिकारों का इस कदर हनन होता है?

क्यूँ उसकी बुलंदियों को आसमान नहीं मिलता?

क्यूँ उसकी इच्छाओं का गला घोंट दिया जाता है?

एक बार सोच कर तो देखो,

कि क्या अस्तित्व होता तुम्हारा एक माँ बिना?

क्या कोई अपना निवाला देता तुम्हे माँ बिना?

क्या कोई परवाह करता तुम्हारी बहन बिना?

क्या कोई साया बनता तुम्हारा पत्नी बिना?

क्या कोई सपने साकार करता तुम्हारे बेटी बिना?

फिर क्यों कोई भी क़द्र नहीं करता इनके प्यार की?

क्यों कोई अहमियत नहीं समझता इनकी?

जब तलक ये सब है दुनिया में

पुरुष जाती इनकी इज्ज़त नहीं करेगी

बस जब ये नहीं होंगी या फिर जुर्म सह-सह के थक जाएँगी

और अपनी आवाज़ उठाएंगी

तभी कुछ हो सकता है

तभी वैदिक युग वापिस आ सकता है शायद.

अ ज़िन्दगी तू ही बता अब

और क्या रास्ता बचा है?

सवाल इतने है पर …

ज़वाब कोई नहीं आखिर क्यूँ?

©️ रचना ‘मोहिनी’

7 Likes · 6 Comments · 42 Views
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