अक़ीदत झूठ की करता नहीं मैं
अक़ीदत झूठ की करता नहीं मैं
बदी के रास्ते चलता नहीं मैं
मुझे आता है लड़ना मुश्किलों से
किसी भी हाल में डरता नहीं मैं
रखा करता हूँ रिश्तों में खरापन
ज़माने को तभी जँचता नहीं मैं
कमी समझो मेरी या कि हुनर तुम
यकीं देकर कभी छलता नहीं मैं
हज़ारों दर्द लेकर जी रहा हूँ
किसी से भी मगर कहता नहीं मैं
मैं भीतर और बाहर एक सा हूँ
मुखौटा ओढ़कर रहता नहीं मैं
भले ही आजमा लो मुझको ‘माही’
वफ़ा की राह पर थकता नहीं मैं
माही
जयपुर, राजस्थान