अाॅखाे ही ऑखो में कुछ बात हो गयी , दिल से दिल की मुलाकात हो गयी ,
अॉखो ही आॅखो में कुछ बात हो गयी ,
दिल से दिल की मुलाकात हो गयी ,
न किसी का डर न किसी का खौफ रहा ,
जब एक नजर में उनसे मुलाकात हो गयी ,
हो गयी मुलाकात फिर कुछ बात हुई ,
बात हुई बात आगे बढी,
मगर इकरार नही इंकार हुई ,
वो कहने लगी हमें,
हमें भूल जाओ तुम ,
अब नही है मेरे बस में
न सॅजेगे अपने सपने
इस तरह हमारे फासले हुए,
फासले के दरमियान कुछ ऐसी बात हुई ,
उसके हाथ पीले आॅख्ा मेरी लाल हुई ,
देखकर उसकी डोली मे हर्फ यु हवास हुई ,
आॅख्ा मेरी भर रही डोली उसकी सज रही ,
देखकर उसकी डोली हम ये विचार करते रहे,
क्या ऐसा भी हो सकता है ,
साथ जीने मरने की कसमें खाने वाली इस कदर बदल सकती है,
मेंं अपने आप को दोषी पाता हूॅ उसके विरह में खुद को वीरान पाता हुॅ,
मेरे दिल के अंदर से आवाज आयी ,
गहलोत इसमें तेरा कोई दोष नही
यह तो मुझसे हुई खता है ,
िजसकी सजा तू भुगत रहा है,
ऑखों ही ऑखाें में कुछ बात हो गयी ,
दिल से दिल की मुलाकात हो गयी ,
भरत गहलोत
जालाेर राजस्थान
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