अहोई आठे की कथा (कविता)
अहोई आठे की कथा
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(1)
आज अहोई आठे की हम तुमको कथा सुनाएँ
इस दिन संतानों की खातिर व्रत रखती माताएँ
(2)
दिन-भर भूखी रहती हैं भोजन का कौर न खातीं
त्याग बसा इनके जीवन में ,इस में ही सुख पातीं
(3)
जब हो जाती रात गगन तारों से शोभा पाता
तब तारों को देख मुदित माता का मन हो जाता
(4)
जैसे तारे आसमान में झिलमिल-झिलमिल करते
वैसे ही घर के आँगन में खुशियाँ बच्चे भरते
(5)
मिली पूर्णता नारी को जब माँ का दर्जा पाया
शुभ विवाह उपरांत गोद में बच्चा सुंदर आया
(6)
यह माँ का ही बल है ,बच्चे संस्कार हैं पाते
जो-जो गुण माताओं में, वह बच्चों में आ जाते
(7)
जैसी रुचियाँ हैं स्वभाव हैं, माता के सब आते
इन्हें गर्भ से ही बच्चे, अपने जीवन में पाते
(8)
अपने से ज्यादा लगाव, माँ को बच्चों से होता
माँ प्रसन्न होती जब बच्चा दिखता सुख से सोता
(9)
इन तारों को देखो कितना ऊँचा उठ कर आए
चाह रही माँ बच्चा उसका उच्च श्रेष्ठता पाए
(10)
अपने लिए बचाकर माँ ने कभी न रखना सीखा
उसका जीवन बच्चों पर सर्वस्व लुटाते दीखा
(11)
क्या यह किसी एक माँ की ही गाथा हैं हम गाते
क्या यह किसी एक बच्चे की हैं हम कथा सुनाते
(12)
इसमें छवि अपनी-अपनी माँ की पाते हैं सारे
सब माताओं के बच्चे उनकी आँखों के तारे
(13)
मॉं ने सुगढ़ हाथ से अपना बच्चा स्वयं तराशा
कभी प्यार से कभी डाँट से भर दी जीवन-आशा
(14)
जिस घर में माँ त्यागशील है, बच्चे सुगढ़ कहाते
देवलोक के दिव्य देवता, नित्य वहाँ हैं आते
(15)
जग में धन से सब मिलता है किंतु नहीं माँ पाते
जहाँ न होती माँ बच्चे सब बिखर-बिखर हैं जाते
(16)
भाग्यवान वह जिनको माँ का शुभ उपहार मिला है
जिनके मुख को देख-देख मुख माँ का कमल खिला है
(17)
कथा अहोई आठे की इस तरह पूर्णता पाती
यह बच्चों के लिए समर्पित माँ की महिमा गाती
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451