एहसास
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अनदेखा..अनजाना..अनछुआ.अनमोल सा ।
नया-नया था एहसास का मौसम रात कल ।।
उमंगो..अरमानों के आत्मीय एहसास से भरे ।
मुहब्बत में सराबोर ” मदमस्त “पल रात कल ।।
सरसराती ….. सनसनाती… सी वो रात ढली ।
प्यार की तेज “आंधियां “सी चली थी रात कल ।।
सांसों के शोर में छलकती रही” मय “रात भर ।
बरस कर इक बूंद प्यार की जब गिरी रात कल ।।
बहुत मचली.. बहुत तडपी..खुशी में भी चहकी ।
तूफानी बारिश में भी सुलगती रही वो रात कल ।।
अरमान …जज्बात..एहसास बहुत कुछ बदला ।।
बरसों से सम्हाला एहसास जो पिघला रातकल ।।
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” गौतम जैन