अहसास न होते तो, सोचा है कि क्या होता
अहसास न होते तो, सोचा है कि क्या होता
ये अश्क़ नहीं होते, कुछ भी न मज़ा होता
तक़रार भला क्यूँकर, सब लोग यहाँ अपने
साजिश में जो फँस जाते, अंजाम बुरा होता
बेख़ौफ़ परिंदों की, परवाज़ जुदा होती
उड़ने का हुनर हो तो, आकाश झुका होता
अख़लाक़ जरूरी है, छोड़ो न इसे लोगो
तहज़ीब बची हो तो, कुछ भी न बुरा होता
मेहमान परिंदे सब, उड़ जाते अचानक ही
रुकता न यहाँ कोई, हर शख़्स जुदा होता
काबा में न काशी में, ढूंढे न खुदा मिलता
गर गौर से देखो तो, सजदों में छुपा होता
मगरूर नहीं हिमकर, पर उसकी अना बाक़ी
वो सर भी झुका देता, गर दिल भी मिला होता
© हिमकर श्याम