अहसास तेरे होने का
अहसास तेरे होने का बस
क्या से क्या कर जाता है,
पथरीले प्रेम डगर पथ को
नर्म मुलायम कर जाता है।
जैसे याद तेरी आती है
मन मुखरित हो उठता है,
खड़ी धूप की दोपहरी को
शीतल शांत बना जाता है।
भीषण जाड़े की वे रातें
जो कटती नही बिना तेरे
नरम रजाई सी जुल्फे
लहराती चतुर्दिक थी मेरे।
ये वादियां जो कभी
सूनी सूनी सी लगती थी,
तेरी मनोरम यादों संग
अब हरी भरी सी है लगती।
सावन सूना , आंगन सूना
हो चली वीथिका पूरी सूनी,
आज भीग कर वारिश में
अहसास तुम्हारी अब पूरी।
निर्मेष तेरे बिन यह जीवन
खाग्र मास हो चला था जो
तेरी मधुरिम पलकों तर
अब मधुमास हो चली है वो।
निर्मेष