*अहम ब्रह्मास्मि*
शीर्षक —- अहम ब्रह्मास्मि
विधा —— छंद मुक्त अतुकांत काव्य
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
एके साधे सब सधे ,
सब साधे सब जाएँ ।
अपने अपने इष्ट सभी के ,
काहे दुख तू पाएँ ?
क्या तेरा क्या मेरा जग में ?
कुछ भी साथ न जाए ।
रुपया पैसा जमीन जायदाद ,
सभी यहीं रह जाये रे बबुआ ।
सभी यहीं रह जाए ।
जैसी करनी वैसी भरनी ।
ये जग माया जाल की गठरी ,
फिर काहे पछताए ?
राम नाम को मन धारण कर ,
सीधा सरल उपाय रे बबुआ ।
सीधा सरल उपाय ।
पूजा करना स्वाभाविक गुण ,
पूजा कर्म मनुज की थाती ।
पूजा करने से जीवन में ,
सुख शांति समृद्धि आती ।
केवल यही उपाय रे बबुआ ,
केवल यही उपाय ।
अपने अपने इष्ट, सभी के ,
काहे दुख तू पाए ?
तन के जोगी मन के रोगी ,
चिन्ता चित में व्याप्त ।
लोक लाज को छोड़कर, करें
व्यसन क्यों आज ?
ईश कृपा तो चाहिए भज मन तू भगवान ।
बुरे संग तू त्याग दे , ले सत्संग का साथ ।