अहं ब्राह्मण:
आज तक जब भी किसी ने उंगली उठाई है तो केवल ब्राह्मण पर ।
लोग कहते है कि ब्राह्मण कर्म से होता है , जाति से
नहीं ।मैने कभी ये नहीं सुना कि क्षत्रिय कर्म से होता है , जाति से नहीं ।कभी ये नहीं सुना कि वैश्य कर्म से होता है , जाति से
नहीं ।कभी ये नहीं सुना कि शूद्र कर्म से होता है , जाति से
नहीं ।लेकिन हमेशा जाति के मामले में ब्राह्मण पर उंगली उठाई गई है ।
मेरा जवाब हमेशा यही होता है कि आपके कर्म के अनुसार ही आपका जन्म ब्राह्मण या अन्य जाति मे होता है ,
क्योंकि ब्राह्मण कुल में जन्म लेने वाले ने कर्म ही एसे किये होते है कि उसे ब्राह्मण के घर जन्म मिलता है ।
ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र बनना व्यक्ति के हाथ में नहीं है ।
यह तो कर्म गति से भगवान के द्वारा दी जाती है ।
जाति जन्म से होती है कर्म से होती तो महायोद्धा भगवान परशुराम क्षत्रिय कहलाते और विश्वामित्र ब्राह्मण इस बात का प्रमाण देखो :–
राम और रावण दोनों ही वेद शास्त्रों मे भी पारंगत थे (ब्राह्मण कर्म ) और राजा और योद्धा भी थे (क्षत्रिय कर्म )
रावण ब्राह्मण और
श्री राम सवयं को सूर्य /रघुवंशी आर्य क्षत्रिय किस आधार पर कहते थे जन्म या कर्म
भगवान कृष्ण ने जब वत्सासुर का वध किया , तब उन्हे ब्रह्महत्या का दोष लगा और उसी दोष को मिटाने के लिये भगवान ने गोवर्धन में मन से गंगा प्रकट की जो आज भी मानसी गंगा के नाम से विख्यात है ।
एक राक्षस को मारने पर ब्रह्महत्या का दोष कैसे
लगा ?
मैं आपको बताता हूँ कि यह राक्षस कि मृत्यु ब्रह्महत्या में कैसे बदली ?
क्यों कि भगवान ने उस राक्षस का जब वध किया तब वह गाय के बछडे के रूप में था , इसलिये भगवान को ब्रह्महत्या लगी ।
इस बात से यह पूर्ण रूप से सिद्ध होती है कि जाति जन्म से होती है , कर्म से नहीं ।
क्योंकि वह बछडा कर्म से राक्षस था , लेकिन शरीर बछडे का था ।
ब्राह्मण को शास्त्रों मे अवध्य बताया गया है ।
चाहे ब्राह्मण कितना ही बडा पापी क्यों ना हो तो भी उसका वध नहीं करना चाहिये , क्यों कि यह ब्रह्महत्या
है ।अश्वत्थामा जन्म से ब्राह्मण था कर्म से क्षत्रिय , उसने पाण्डवों के पाँचों पुत्रों कि हत्या कर दी थी ।
लेकिन भगवान ने पाण्डवों को उसका वध नहीं करने दिया और कहा कि ब्राह्मण का अपमान ही ब्राह्मण कि मृत्यु होता है ।
अतः इसके मस्तक से मणि निकालकर इसका अपमान कर दो , यही इसके लिये मृत्युदण्ड है ।
तुलसीदास जी ने सर्वप्रथम ब्राह्मणों कि वंदना कि
है ।
बंदउँ प्रथम महीसुर चरना ।
मोह जनित संसय सब हरना ॥
सुजन समाज सकल गुन खानी ।
करउँ प्रनाम सप्रेम सुबानी ॥
पहले पृथ्वी के देवता ब्राह्मणों के चरणों की वंदना करता हूँ , जो अज्ञान से उत्पन्न सब संदेहों को हरने वाले हैं ।