अहं का अंकुर न फूटे,बनो चित् मय प्राण धन
मर न जगमय मौत,हँस गह अमऱता का ज्ञान कन।
जूझ मत, यह जिंदगी, सचमुच सजग आनंद पन।
मुसकराना सीखकर भय मुक्त बन, लेकिन कभी,
अहं का अंकुर न फूटे , बनों चित् मय प्राण धन।
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता
चित् =आत्मा
प्राण =जीवन