अहंकार
हर व्यक्ति में एक विकार
भरा हुआ है अपार
अहंकार ही अहंकार
ना समझ सका स्वयं
वह रावण जिसने
उसके कुल का विनाश किया
वही तो था अहंकार
था कंस को भी अहंकार
ना उसको कोई मार पाएगा
शिशुपाल और दुर्योधन
को अपनी शक्ति का अहंकार
कुटिल चतुर शकुनी को भी
था अपनी गोटी पर अहंकार
काल की गर्त में चले गए सब
छोड़ यहीं पर अहंकार।
नेता को अपनी कुर्सी का
पुलिस को अपनी वर्दी का
विज्ञान को अपनी खोज का
विद्वान को अपनी सोच का
डॉक्टर को अपनी शिक्षा का
गुरु को अपनी दीक्षा का
धनी को अपने दान का
गुणी को अपने ज्ञान का
सभी समाया एक समान
अहंकार ही अहंकार।
– विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’