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13 Jun 2023 · 1 min read

अहंकार का एटम

विजय मिले चाहे भी जिसको, सैनिक मारा जाता है
दो पाटों के बीच मौत के, घाट उतारा जाता है
युद्ध-कुण्ड की बलि वेदी में, ज़बरन झोंका जाता है
समरभूमि में लाशें विखरी, उसे न रोका जाता है।।

अखण्ड भूतल राज-पाट हित, लिप्सा बढ़ती जाती है
दमन नीति की प्रचण्ड ज्वाला, नभ में चढ़ती जाती है
लाशों की शैय्या पर अपना, राज बढ़ाया जाता है
धनबल की पशुता का नङ्गा, नाच दिखाया जाता है।।

दफ़न हो रहा सदा सिपाही, पूछो उन विधवावों से
कितनी कोंख उजड़ जाती है, पूछो उन माताओं से
हर कोई लाचार हुआ है, ज़ुल्मी क्रूर विचारों से
विश्व काल के गाल जा रहा, धृष्टराज मक्कारों से।।
विश्व काल के गाल झोंककर धृष्ट मनुज क्या पाता है

अहंकार का एटम बम नित, घूर रहा है खाने को
अपर सूर्य विकराल दम्भ का, निकला वज्र गिराने को
झेल नहीं पाएगी दुनियाँ, अबकी काल-सुनामी को
रोक सको हे विश्व- देवता, मानव की मनमानी को।।
रोक सको मनमीत मनुज को आज गर्त में जाता है।।

डॉ. मनमीत

Language: Hindi
265 Views
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