अस्मत
देखा था उसको कई रोज पहले
पहलू में अपनी इज़्ज़त बचाये
सरपट दौड़ता एक बाप
बच्ची को अपनी काँख में दबाये ।।
लूटी थी अस्मत मासूम बाला के
उसने कभी जिसे मामा कहा था
समाज में फैली कुत्सित भावना को छिपाये
एक बाप बदहवास भागा जा रहा था ।।
नैतिकता की अवहेलना जिसने की
इज़्ज़त उसकी गई या इसकी
इन्ही सवालो के जवाब ढूंढ़ने
एक बाप थाने में हाजिरी लगा रहा था।
——–अर्श