अस्त सूर्य
सूर्य अस्त
घोर तिमिर की बेला थी
निस्तेज खड़ा रश्मि रथ
अश्व उसके सब बंधक
स्तब्ध पड़ा ज्योति पथ
तेज पुंज का वो पोषक
देदीप्यमान, ज्योतिर्पुंज
अग्नि थी धधक-धधक
ठंडी पड़ी दमक-दमक ।।
क्या हुआ , कैसे हुआ
किसने रचा काल यहां
सर्जक था जो सृष्टि का
घर उसके था तम वहां ।।
लो, मौन हुई उसकी कथा
जैसे दीपक की लुप्त बाती
फूली देह, फिर लाल-लाल
सूर्य अस्त की यही व्यथा ।।
-सूर्यकांत द्विवेदी