Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Oct 2021 · 2 min read

अस्तित्व

हमारे अस्तित्व का प्रारम्भ विन्दु
इतना सूक्ष्म!
कि वह
न तात्विक है न यौगिक।
न देह,न पदार्थ, न देवता।
तरंग से होकर उत्पन्न
तरंग में है पैठ जाता।

किन्तु,हम करते हैं स्पर्श।
देख पाते हैं इसका उत्कर्ष और अपकर्ष।
क्योंकि विस्तृत है ब्रह्म का वह थोड़ा अंश
और धर पाता है स्वरूप गणनाओं में अनंत।
बना पा लेता है अस्तित्व का संसार।
अस्तित्व का संसार अस्तित्व तक सत्य है
भौतिकता का रसायन शास्त्र व
रसायन का भौतिक विज्ञान
ज्यामिती और गणित सा सच्चा तथ्य है।
देह एक विज्ञान है,
सच्चा इंजीनियरिंग।
देह के निर्माण में ढांचागत विकास
और
अंगों का उद्भव चलता है साथ-साथ।
लेता है आकार कला और विज्ञान।
देह है ऊर्जा का संस्करण ।
और ऊर्जा रक्त का आदि कण।
ये आदि कण अणुओं से सज्जित।
एवम् अणु परमाणुओं से निर्मित।
परमाणु प्रारंभ नहीं है बल्कि देह, मृत या जीवित,
का पड़ाव।
आगे भी है ढेरों खुलना गांठें
तर्क का है सुझाव।
परमाणु विघटित होते हैं।
अपना स्वरूप बिल्कुल खोते हैं।
जब छीजन होता है प्रारंभ,
बिखरता है इसका सारा दंभ।
देह, बहुत सारे अंगों के इकट्ठा होने से बना है।
जीवित या मृत भी ऊतकों के पिंड का घना है।
ऊतक तोड़ो तो कुछ और कुछ और।
कुछ और के बाद भी वही कुछ और।
वह कुछ और अपनी परिभाषा व व्यवहार
बदलते रहता है
बनता रहता है ईश्वर की पहचान।
अधूरा है शायद रहेगा अधूरा ही
ईश्वर की खोज एवम् पहचान।
जीवन के अस्तित्व की इकाई रक्त कण से
होता हुआ प्रारम्भ
अस्थि,मज्जा,नख,बाल,माँस,
घ्राण,ज्योति,श्रवण,स्पर्श,वाक्-
तर्क,विवेक,लोभ,ईर्ष्या,होड़,
आनंद,अफसोस,पश्चाताप
दु:ख-दर्द,अश्रु,
युद्ध,हत्या,बलात्कार
धोखा,अपहरण और शासन।
हर भाव,हर चेष्टा को प्रकट करने तक जाता है।
अनेक जटिल प्रक्रियाओं का ढूह है जीवन।
सर्वोत्तम तो वह प्राण है जो अपरिभाषेय है।
है क्या वह! आश्चर्य?
हवा रोक दो तो गायब।
जल सुखा दो तो गायब।
सम्पूर्ण देह में अद्वितीय।
मृत देह का विश्लेषण देवताओं ने किया है।
इसलिए अमृत और अमरता का लोभ उसीने जिया है।
इतिहास में क्यों बंद है देवता।
और अस्थाओं तक जीवित।
मोक्ष किसका?
देह का,आत्मा का, दु:ख का ?
जीवन से स्पंदित पिंड का
अपने आदि स्वरूप में लौटना ही मोक्ष है।
उसका जड़ हो जाना ही मोक्ष है।
अनुभूतियों से रिक्त होना ही मोक्ष है।
सूर्य के केंद्र में कणों की जो आदि अनुभूति है
और उनका अनादि जीवन।
वहाँ तक पहुँचने की क्रिया में जीवन एक
अचानक का पड़ाव है।
इस जीवन के आदि कण का विस्तार
कण का हिस्सा नहीं ऊर्जा है।
वह ऊर्जा है कोई एक परमसूक्ष्म कण
वह कण है सूक्ष्म का विराट स्पंदन।
विभाजित और संयोजित होना है उसका धर्म।
उस धर्म का बस परिवर्तित होते रहना है कर्म।
———————————————–

Language: Hindi
343 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

किसान आंदोलन
किसान आंदोलन
मनोज कर्ण
पानी में हीं चाँद बुला
पानी में हीं चाँद बुला
Shweta Soni
प्रेम..
प्रेम..
हिमांशु Kulshrestha
"मैं मजाक हूँ "
भरत कुमार सोलंकी
بدلتا ہے
بدلتا ہے
Dr fauzia Naseem shad
लो फिर नया साल आ गया...
लो फिर नया साल आ गया...
Jyoti Roshni
2934.*पूर्णिका*
2934.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
25. Dream
25. Dream
Ahtesham Ahmad
सिनेमा,मोबाइल और फैशन और बोल्ड हॉट तस्वीरों के प्रभाव से आज
सिनेमा,मोबाइल और फैशन और बोल्ड हॉट तस्वीरों के प्रभाव से आज
Rj Anand Prajapati
मेरा प्यार
मेरा प्यार
Shashi Mahajan
"दिल की बातें"
Dr. Kishan tandon kranti
भाई बहन का प्रेम
भाई बहन का प्रेम
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
ठोकरें आज भी मुझे खुद ढूंढ लेती हैं
ठोकरें आज भी मुझे खुद ढूंढ लेती हैं
Manisha Manjari
हर कस्बे हर मोड़ पर,
हर कस्बे हर मोड़ पर,
sushil sarna
बूढ़ा हो  बच्चा हो या , कोई  कहीं  जवान ।
बूढ़ा हो बच्चा हो या , कोई कहीं जवान ।
Neelofar Khan
मोरनी जैसी चाल
मोरनी जैसी चाल
Dr. Vaishali Verma
"तुम कब तक मुझे चाहोगे"
Ajit Kumar "Karn"
धुप साया बन चुकी है...
धुप साया बन चुकी है...
Manisha Wandhare
कविता -
कविता - " रक्षाबंधन इसको कहता ज़माना है "
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
मित्रता स्वार्थ नहीं बल्कि एक विश्वास है। जहाँ सुख में हंसी-
मित्रता स्वार्थ नहीं बल्कि एक विश्वास है। जहाँ सुख में हंसी-
Dr Tabassum Jahan
प्रायश्चित
प्रायश्चित
Shyam Sundar Subramanian
हमारा घोषणा पत्र देख लो
हमारा घोषणा पत्र देख लो
Harinarayan Tanha
क़दम-क़दम पे मुसीबत है फिर भी चलना है
क़दम-क़दम पे मुसीबत है फिर भी चलना है
पूर्वार्थ
सुहागन वेश्या
सुहागन वेश्या
Sagar Yadav Zakhmi
अभी तो रास्ता शुरू हुआ है।
अभी तो रास्ता शुरू हुआ है।
Ujjwal kumar
सुबह भी तुम, शाम भी तुम
सुबह भी तुम, शाम भी तुम
Writer_ermkumar
आजकल कल मेरा दिल मेरे बस में नही
आजकल कल मेरा दिल मेरे बस में नही
कृष्णकांत गुर्जर
मजहब
मजहब
ओनिका सेतिया 'अनु '
संदेश
संदेश
लक्ष्मी सिंह
संविधान बचाना है
संविधान बचाना है
Ghanshyam Poddar
Loading...