अस्तित्व
जगत जननी
जगत पालनी है
धरती
असीम कष्ट
असीम संकट
झेल कर भी
पालती है धरती
धरती के बिना
शून्य है
मानव का अस्तित्व
भटक गया है इन्सान
स्वार्थी हो गया है इन्सान
धरती के जिस संतुलन को
बनाया था प्राकृति ने
उसे विध्वंस कर रहा है इन्सान
जंगल काट रहा
नदी तालाब प्रदुषित कर रहा
कांक्रीट से सजा रहा
धरती को
पशु पक्षी पेड पौधे
दे रहे है अभिशाप इंसान को
तभी तो बाढ सुनामी सूखे अकाल
का है तान्डव पूरी धरती पर
समय रहते जागरूक हो इंसान
धरती का करे मान सम्मान
धरती माँ का करे उद्घोष
और संरक्षण का
हम करे संकल्प
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल