अस्तित्व
कभी किसी शिल्पकार की मूर्ति में,
कभी किसी चित्रकार की कृति में,
कभी किसी कवि की भावाभिव्यक्ति में,
कभी किसी गायक के गायन श्रुति में,
कभी किसी वादक के वाद्य तरंगित ध्वनि में,
कभी किसी साधक के प्रभामंडल ज्योति में,
कभी किसी विद्वान की प्रसारित सूक्ति में,
कभी संकल्पित भाव लिए दृढ़ युवाशक्ति में,
कभी किसी अबोध शिशु की स्मित हँसी में,
कभी पूर्ण समर्पित भाव लिए लीन भक्ति में,
कभी नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण सृष्टि में,
अंतर्दृष्टि जब परिमार्जित होती है,
तब सर्वत्र व्याप्त ईश्वर अस्तित्व अनुभूति होती है।