अस्तित्व पर संकट
फैल चुका है विष बयार में
संकट अस्तित्व पर गहराया है
शांति प्रिय सेना के क्रियाकलापों से
जगत सारा थर्राया है
कहां गई संस्थाएं सारी
एमनेस्टी की बातें जो करती थीं
क्या उनको चश्मे से हमेशा
धरती हिंद की ही दिखती थी
क्यों इतना अभिमान पाले हो
कोई मिटा नही सकता है
क्यों जीते हो इस भ्रम में कि
दिवाकर अस्त नहीं हो सकता है
कब तक चक्षु मूंदे अपनी
सुप्तावस्था में पड़े रहना है
दंगों का यह नंगा तांडव
कब तक तुम्हें झेलते रहना है
आंखों का काला चश्मा
अब तुम्हें उतरना ही होगा
निबटने गद्दारों से अब निर्णय
कठोर लेना ही होगा
अपने निहित स्वार्थ के चलते
तुमने देश का नाश किया था
तात्कालिक समस्या से निबटने
अपने ही पैरों पर वार किया था
बीज तो तुमने बोए बरसों
फसल सामने तैयार खड़ी है
विद्रोही के आगे झुकने से
देश की अक्षुणता बड़ी है
अस्तित्व देश का रखने अक्षुण
कानून नया बनाना होगा
कानून हाथ में लेने वालों को
सबक अच्छे से सिखाना होगा
( विगत एक सप्ताह की फ्रांस की घटना पर)
9.7.2023