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11 Jan 2017 · 1 min read

असुर सम्राज

लिख रहा हूँ भावो को शब्दों मे पिरोकर,

कुछ लिखू जगति की थाती छंदो से सजाकर ,

मानुष देह अब अभिशाप लगने लगी हैं,
मनुष्य होने की परिपाटी अब मिटने लगी है;

भाई को भाई खा गया ,कैसा जमाना आ गया,
अब इस धरा पर पाप का वसंत छा गया,

गीता के उपदेश अब फीके लगने लगे,
अब हर गली मे दुष्ट दुशासन चीर हरण करने लगे,

कायरता के इन पुतलो ने मानवता को रौद दिया,
वैर वैमन्स्य की खाई पर असुर सम्राज फिर खडा किया,
लेखक-राहुल आरेज

Language: Hindi
428 Views

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