असहनीय है कृत्य….
खुलेआम है खेलता, पैशाचिक जो खेल।
बने एकजुट रामपुर, उस पर कसे नकेल।
उस पर कसे नकेल, सबक ऐसा सिखलाये।
नहीं दुशासन क्रूर जन्म फिर से ले पाए।
असहनीय है कृत्य, हुआ जो सरेआम है।
मिले क्रूरतम दंड, उचित यह खुलेआम है।।
–इन्जी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’