असहज रात भर !
यूंँ ही रात में,
असहज रात भर,
मैं पन्ने पलटता रहा….!
ऐसा एहसास करता रहा,
कभी मोम की रोशनी में,
कभी चांँद के प्रकाश में,
यूंँ ही रात में….!
सोचा कुछ सीख लूँ,
बाखूबी ‘त्रिपिटक’ बाँचता रहा,
टिमटिमाते दीपक की लौ में,
यूंँ ही रात में……!
हृदय में ज्ञान भर लूँ,
मस्तिष्क में सब गढ़ लूँ,
आग की रोशन लौ में,
यूंँ ही रात में……!
अंततः सूर्य उदय हुआ,
रोशन सारा जग हुआ,
देख सब समझ आया,
यूंँ ही रात में……!
कभी मोम ,कभी चांँद,
कभी दीपक ,कभी आग,
बस यूंँ ही कोरे पन्ने,
यूंँ ही रात में……!
#बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर !