असल हूं असल दिखता हूं
असल हूं असल दिखता हूं
सरल हूं सरल लिखता हूं
रोज देखता हूं अतरंगी दुनिया कभी हंसता कभी रोता हूं
अपने जीवन के अनुभवों को बना मोती कविता की माला में पिरोता हूं
सोचता नहीं हूं ज्यादा बस ख्यालों को बहने देता हूं
ढूंढता नहीं हूं शब्द कठिन अपनी बात बस भावों को कहने देता हूं
सजीले वाक्यों से कहां मेरा मेल है
मेरी कविता तो बस सादगी का खेल है
दिलों को आपके छू सकूं इसी कोशिश में रहता हूं
पानी का रंग हूं पानी की तरह ही बहता हूं
बड़े बड़े शब्दों से मेरा नाता नहीं
जो मन में आता मैं तो लिखता वही
क्योंकि
असल हूं असल दिखता हूं
सरल हूं सरल लिखता हूं