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22 Aug 2017 · 1 min read

अश्क़ देने यार फिर आ गए

अश्क़ देने यार फ़िर आ गए
लबों की हँसी चुराने आ गए

मीठी मीठी बाते करके
ज़हर पिलाने आ गए

शांत बहती हुई धारा में
कश्ती यार डुबाने आ गए

आज़ाद पंक्षी खुले आसमाँ के
यार कफ़स (पिंजरा)लगाने आ गए

बावफ़ा बन नही सके गमगुस्सार
वफ़ा के किस्से सुनाने आ गए

जफ़ा(घाव) देकर जिस्म में जनाब
जानी(प्रेमी)जनाज़ा उठाने आ गए

गम्माज (भेदिये) मन बहलाने को
क़ल्ब (दिल) जलाने को आ गए

प्यार ऐ उल्फ़त में जानी
क़ल्ब में खंज़र चुभाने आ गए

ज़नाब अपने जज़्ब आदाओं से
क़ल्ब में जख़्म लगाने आ गए

चश्म ओ चिराग़ बने वो अब
भूपेंद्र को रुलाने वो आ गए

भूपेंद्र रावत
22।08।2017

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