अश्रु की भाषा
अश्रु की अपनी भाषा होती है।
कभी कष्ट के , तो कभी प्रसन्नता के ,
कभी आघात के , तो कभी पश्चाताप के ,
कभी मिलन के , तो कभी वियोग के,
कभी पाने के, तो कभी खोने के ,
कभी आभार के , तो कभी तिरस्कार के ,
कभी सम्मान के , तो कभी अपमान के ,
कभी कृतज्ञता के ,तो कभी विश्वासघात के,
ये मूक संवेदना के स्वर हैं।
ये हार्दिक अनुभूति मुदित सारगर्भित प्रखर हैंं।