अश्क
ये अश्क का दरिया है खुशी का इन्हें बह जाने तो दो
मत करना कोशिश पोंछने की गालों तक आने तो दो
सालों बाद आई है चमक आंखों में जो गुम थी अंधेरों में
चेहरा धुंधला सा है उनका मगर मुझे पहचानने तो दो
सालों साल गुजारे हैं तन्हाई में उनको याद करके
थक चुका था मंदिर पीर ए मजार फरियाद करके
एक आस लिए टकटकी लगी थी दहलीज़ पर
लौट कर वापिस आयेगा जरूर मुझे याद करके
मेरे ज़िगर का टुकड़ा आज घर वापिस आया है
दफन हो चुकी मेरी सारी खुशी संग में लाया है
दर्द है ये मेरे दिल का अश्कों में जो बह रहा है
बहुत कुछ खोया है मगर आज सुकून आया है
वीर कुमार जैन
25 अगस्त 2021
एक बाप का दर्द बचपन में बिछड़े बेटे के लिए जो आज वापिस आया है।