अश्कों को ढल जाने दो
अश्कों को ढल जाने दो
मेरी आँखों से अश्क़ को ढल जाने दो।
गैरो ने नही मुझे तो अपनो ने रुलाया था।।।।
मग़रूर थे हम ही हमी से वो हमारे ही है।
मग़र गैरों और अपनो का फर्क आईने ने दिखाया था।
ढूंढने निकले थे दामन अपना भुला कर जहाँ में।
जिसको चाहा दिल से उसी ने सताया था।।।।
हर चाँदनी रात के साये में आँखों ने सजाये थे सपने।
उन्ही को तोड़ महबूब की याद में मैने पलकों को भींगाया था।।।।
जिसे समझा हर हाल में अपना ही साथी।
मग़र वो साया भी अंधेरा देख निकला पराया था।
दिल के बाग़ से फूल को उसके लिए सम्भाला था।
उसी के लिये हमने खुद को दुनियां की बद नज़रों से बचाया था।।।।।।।
बिन गलती के साथ उसने छोड़ा था हमारा।
सोनु ने हर बार प्रेम का रिश्ता उनसे निभाया था।।।
रचनाकार
गायत्री सोनु जैन
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